Saturday, January 30, 2010

आज़ादी के लिए संघर्ष का सन्देश देती हैं गोरख की कविताएँ

‘गोरख पाण्डेय की कविता हमें आज़ादी के लिए संघर्ष का सन्देश देती है। हिन्दी की जो राजनीतिक कविता है उसमें नागार्जुन और गोरख पाण्डेय ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएँ कलात्मकता और लोकप्रियता - दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण हैं। आज जब संस्कृति के क्षेत्र में एक नये धनिक मध्यवर्ग का वर्चस्व हो गया है और जनपक्षधर साहित्य को जानबूझकर हाशिये पर धकेल दिया गया है, तब जनसाहित्य के पक्ष में जो लोग सक्रिय हैं उन्हें गोरख के रचनाकर्म से बहुत कुछ सीखना होगा।’ कनौट प्लेस स्थित इण्डियन काॅफी हाउस में जसम के पहले महासचिव क्रान्तिकारी कवि गोरख पाण्डेय की याद में जन संस्कृति मंच, दिल्ली और नई जमात द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आलोचक प्रो॰ चमनलाल ने ये विचार व्यक्त किए।
जसम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कवि शोभा सिंह ने कहा कि जनता के बीच गहराई से उतरकर और उनके दुख-दर्द, लूट-शोषण की दुनिया और उनके संघर्ष को ठीक से जानकर ही गोरख की काव्य परम्परा को आगे बढ़ाया जा सकता है और बेहतर दुनिया के सपने को साकार किया जा सकता है। युवा कवि प्रमोद कुमार तिवारी ने कहा कि भोजपुरी में लिखना गोरख का एक सचेत वैचारिक चुनाव था। आज जो भोजपुरी संस्कृति में अश्लीलता का बोलबाला है उससे निबटने के लिए भी गोरख जैसे कवियों के गीतों को व्यापक समाज के केन्द्र में लाना चाहिए।
कार्यक्रम की शुरुआत हिरावल द्वारा निर्मित आॅडियो कैसेट में संतोष झा द्वारा गाये गये गोरख के प्रसिद्ध गीत ‘एक दिन राजा मरले आसमान में उड़त मैना’ से हुई। इस मौके पर कवि रन्जीत वर्मा, रोहित प्रकाश, कुमार मुकुल, राजेश चन्द्र, भाषा सिंह, शोभा सिंह, अच्युतानंद मिश्र, रूबल सक्सेना, मुकुल सरल ने क्रमशः गोरख पाण्डेय की स्वर्ग से विदाई, बच्चों के बारे में, कैथर कला की औरतें, फिलिस्तीन, समझदारों का गीत, जानता हूँ, बंद खिड़कियों से टकराकर, कला कला के लिए, रफ़्ता-रफ़्ता नज़रबन्दी का जादू घटता जाए है, हम कैसे गुनहगार हैं आदि कविताओं और ग़ज़लों का पाठ किया। इस अवसर पर गोरख के निधन के तुरत बाद जनसांस्कृतिक आंदोलन के उनके सहयोद्धा महेश्वर द्वारा लिखे गए बेहद मार्मिक और प्रभावकारी स्मृतिलेख ‘एक नग़मा है पहलू में बजता हुआ’ का पाठ सुधीर सुमन ने किया।
कार्यक्रम में गोरख कीे रचनाओं के बारे में नागार्जुन, शमशेर और अनिल सिन्हा के विचारों को भी पढ़ा गया। बकौल नागार्जुन ‘गोरख की कविताएँ अन्धेरी रात के स्याह सन्नाटे में जुगनुओं की तरह जगमगाएँगी, बियाबान में टाॅर्च का काम करेंगी, टिमटिमाते दीपक की तरह तब तक रोशनी देती रहेंगी जब तक भोर का सूरज नहीं उग जाता।’
शमशेर के अनुसार गोरख माक्र्सवाद के होशमंद अध्येता थे। इतनी सुलझी हुई दृष्टि बहुत कम माक्र्सवादी लेखकों व विचारकों में मिलेगी। गोरख असली, टटके, शुद्ध, एकदम ओरिजिनल - यानी मौलिक रूप से - सच्चे लोककवि थे। अपनी शैली और वैचारिक ईमानदारी के कारण वह पाठकों के हृदय और मस्तिष्क दोनों को अत्यन्त सहजता से गाइड करते चलते हैं। नए लेखकों, कवियों और विचारकों, स्वस्थ साहित्य के प्रेमियों के लिए निश्चय ही वह विशिष्ट कवि, लेखक व विचारक हो जाते हैं। यही चीजें उन्हें मजदूर, किसान, मध्यवर्ग का एकदम अपना कवि व लेखक बनाती हैं।
अनिल सिन्हा ने चिह्नित किया है कि ग़ज़लों की जिस परम्परा को दुश्यन्त कुमार छोड़ गए थे, उसे गोरख ने समृद्ध ही नहीं किया उसके अलंकार भी बदल दिए। दुश्यन्त कुमार की ग़ज़लों के बाद हिन्दी में ग़ज़लों की भरमार हो गयी - ग़ज़लें चुटकुलों की तरह लिखी जाने लगीं और कुछ भी किसी तरह कहने का फैशन सामने आया। गोरख की ग़ज़लें इस गिरती हुई दशा पर एक ब्रेक है। उन्होंने सिद्ध किया कि लोकप्रिय काव्य-विधा को विचारों का वहन करते हुए लोक में जाना चाहिए।
इस अवसर पर पत्रकार अजय प्रकाश, कवयित्री विपिन चैधरी, कवि इरेन्द्र, गीतकार कमल कुमार, इतिहास के शोधार्थी धीरज कुमार नाइट, चित्रकार रोहित जोशी, पत्रकार संजय त्रिपाठी आदि भी मौजूद थे। संचालन भाषा सिंह ने किया तथा अध्यक्षता प्रो. चमनलाल ने की। धन्यवाद ज्ञापन कवि-आलोचक कुमार मुकुल ने किया।  
इस मौके पर जसम की ओर से विश्व पुस्तक मेले में साहित्य के कारपोरेटाइजेशन के खिलाफ पर्चे बाँटने और साहित्यकारों की स्वतन्त्रता एवं साहित्यिक संस्थाओं की स्वायत्तता के पक्ष में अभियान चलाने का प्रस्ताव लिया गया। जसम की ओर से वहाँ पर्चे बाँटे जाएँगे ताकि इस गम्भीर मुद्दे को लेकर साहित्यकार और पाठक विचार मन्थन करें। जनता के साहित्यकार गोरख पाण्डेय के प्रति भी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।  
                                                   भाषा सिंह
                                                   सचिव,
                                        जन संस्कृति मंच, दिल्ली