सुरेंद्र किशोर (वरिष्ठ पत्रकार)
बिहार सरकार, भारत सरकार, नेपाल सरकार और पक्ष- विपक्ष के अधिकतर नेतागण, कोशी बाढ़ विपदा को लेकर सब के सब पीड़ित जनता व अन्य जानकार लोगों के सवालों के कठघरे में हैं। सवाल यह है कि समय रहते और मौका मिलने पर कितने लोगों ने ईमानदारी व कार्य कुशलतापूर्वक अपनी भूमिका निभाई? सबको बारी-बारी से इसका जवाब देना है। पर अभी तो सब एक-दूसरे पर आरोप लगाने में लगे हुए हैं या फिर अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश में हैं। उधर, पूर्वोत्तर बिहार के करीब 30 लाख बाढ़ पीड़ितों के रिलीफ व पुनर्वास का विशाल काम अभी लंबे समय तक जारी रहना है। यह विपदा इतनी बड़ी है कि इस तरह का कोई दूसरा उदाहरण इतिहास में खोजे नहीं मिल रहा है। यह विपदा कितनी दैवी है और कितनी मानवनिर्मित, इस पर भी बहस जारी है। पक्ष-विपक्ष के नेताओं की आ॓र से जो बना–बनाया बयान रोज ब रोज परोसा जा रहा है, वह यह है कि हम नहीं बल्कि हमारे राजनीतिक विरोधी ही इसके लिए जिम्मेदार हैं।
ऐसे बयान पढ़ और सुनकर लोग बाग हैरान हैं। कोसी तटबंध विध्वंस के लिए जिम्मेदार तत्वों को लेकर रोज ब रोज नए-नए तथ्य भी मीडिया में आ रहे हैं। अब तक मिली जानकारियों के आधार पर मोटा- मोटी इस दुर्घटना की जो तस्वीर उभरती है, उसके अनुसार कमोवेश सभी संबंधित पक्ष जिम्मेदार लग रहे हैं। हालांकि कुछ बातें इतनी तकनीकी और पेचीदगी भरी है कि उनके आधार पर कोई उच्चाधिकारप्राप्त आयोग ही जांच के बाद किसी ठोस नतीजे पर पहुंच सकता है। इतनी बड़ी दुर्घटना के लिए कौन-कौन से तत्व व पात्र जिम्मेदार रहे हैं, इसकी जांच जरूरी मानी जा रही है। अन्यथा ऐसी किसी अन्य दुर्घटना की आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता।
मामला इतना संश्लिष्ट है कि एक ही सरकारी पत्र को आधार बना कर सत्ताधारी पक्ष अपना बचाव कर रहा है तो विरोध पक्ष कोसी तटबंध को टूटने से बचाने में विफल रहने के लिए सरकार पर बयानी हमला कर रहा है। वह पत्र वीरपुर, नेपाल स्थित जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार के मुख्य अभियंता सत्यनारायण का है। नौ अगस्त 2008 को मुख्य अभियंता ने काठमांडू स्थित संपर्क पदाधिकारी अरूण कुमार को लिखा कि ‘सूचित करना है कि आरक्ष, बन टप्पू प्रक्षेत्र, कुशहा, जिला–सुनसरी(नेपाल)कार्यालय के समीप पूर्वी बहोत्थान बांध के स्पर किलोमीटर 12.90 पर कोशी नदी के तीव्र प्रवाह के कारण भीषण कटाव जारी है। अंतत: बांध वहीं टूटा। रात-दिन बाढ़ संघर्षात्मक कार्य कराए जा रहे हैं। इस स्पर पर भारतीय भूभाग से आवश्यक बाढ़ सामग्री नेपाल प्रभाग में ले जाने में भंटावारी कस्टम, सुनसरी (नेपाल)द्वारा अनावश्यक विलंब किया जा रहा है। साथ ही स्थल पर कार्यरत मजदूरों को बनटप्पू आरक्ष सेना, कुशहा द्वारा कार्यस्थल से भगा दिए जाने के कारण बाढ़ संघर्षात्मक कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
’मुख्य अभियंता ने लिखा कि ‘अत: स्थल को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से नेपाल प्रशासन से सहयोग की अपेक्षा की जा रही है। अनुरोध है कि इस संदर्भ में उच्चस्तरीय सहयोग हेतु समुचित कार्रवाई करना चाहेंगे।’ इस पत्र की प्रतियां उन्होंने पटना स्थित अपने विभाग के अफसरों को भेजी या नहीं, यह बात इस पत्र की फोटो कापी देखने से साफ नहीं है। पर बाद में सत्यनारायण ने जो चिटि्ठयां उन्होंने 14, 15 और 16 अगस्त 2008 को भेजीं, उनकी प्रतियां उन्होंने पटना में अपने उच्चाधिकारियों को भी भेजीं। तब तक स्थिति काफी बिगड़ चुकी थी। तटबंध की रक्षा नहीं की जा सकी और इस बीच 18 अगस्त को तटबंध टूट गया। उससे बिहार के आधा दर्जन जिलों में जो प्रलयंकर बाढ़ आई, उसकी हृदय विदारक पीडा़ लोगबाग झेल रहे हैं। अनेकानेक पीड़ितों की दर्दनाक स्थिति टीवी पर देखकर देश-प्रदेश के अनेक लोग मर्माहत हैं।
इस बीच मुख्य अभियंता सत्यनारायण के पत्र को बिहार के सत्ताधारियों ने इस तरह अपने बचाव का हथियार बनाया कि उस पत्र के अनुसार मजदूरों को वहां काम नहीं करने दिया गया और कस्टम के लोगों ने भी आवश्यक बाढ़ सामग्री को स्थल पर ले जाने में अनावश्यक विलंब कराया। पर दूसरी आ॓र प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्य अभियंता द्वारा बार-बार पत्र लिखे जाने के बावजूद बिहार सरकार ने समय रहते तटबंध को कटने से रोकने के लिए समुचित कदम नहीं उठाया। इसको लेकर राजद नेता और राज्य के पूर्व सिंचाई मंत्री जगदानंद ने कहा कि ‘बांध टूटा नहीं है बल्कि उसे तोडा़ गया है। उन्होंने कहा कि छह अगस्त से ही एफलक्स बांध में रिसाव शुरू हो जाने की जानकारी बिहार सरकार को थी। पर उसे रोकने के लिए कार्रवाई नहीं की गई। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उनकी सरकार कातिल है और उन्हें एक दिन जेल जाना पड़ेगा।’ बिहार जदयू के अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ने कहा कि राजद गलतबयानी कर रहा है। राज्य सरकार ने पांच अगस्त से ही कोसी के कटाव वाले स्थल पर कटाव रोकने के लिए काम शुरू कर दिया था लेकिन नेपाल के स्थानीय लोगों और वहां के प्रशासन का सकरात्मक सहयोग नहीं मिल सका। नौ, चौदह, पंद्रह और सोलह अगस्त को नेपाल स्थित भारतीय दूतावास और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत करा दिया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी से बातचीत की। फिर भी केंद्र सरकार की आ॓र से सकारात्मक पहल नहीं की जा सकी।
याद रहे कि जहां कोसी का तटबंध टूटा है, वह स्थल नेपाल में है। वहां मरम्मत व दूसरे कार्यों को लेकर आए दिन माआ॓वादियों के विरोध का सामना बिहार सरकार के सिंचाई विभाग के अफसरों को करना पडा़ है। हाल के महीनों में नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहा, इस कारण भी तटबंध पर काम करने में नेपाल सरकार पहले जैसा सहयोग नहीं दे सकी। 1993 में भी उसी स्थल पर कटाव का खतरा उपस्थित हुआ था। तब के सिचाई मंत्री जगदानंद और सिंचाई सचिव विजय शंकर दुबे के अथक प्रयास से कटाव नहीं होने दिया गया था। तब आज के सिंचाई मंत्री विजेंद्र यादव लालू मंत्रिमंडल के सदस्य थे और उस स्थल पर जगदानंद के साथ गए भी थे। वे उस स्थल की नाजुक स्थिति को देख चुके थे। फिर भी इस बार वे भरपूर तत्परता नहीं दिखा सके, इसको लेकर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है।
हाल में नेपाल के एक अखबार ‘सिंहनाद ’ में प्रकाशित एक खबर का शीर्षक था,‘ कोशी बाढ़ पर नेपाल सरकार द्वारा गलती स्वीकार’। उस खबर के अनुसार,‘माआ॓वादी के तमाम नेताओं और मंत्रियों द्वारा कोसी बांध के टूटने के पीछे भारत को दोषी ठहराने की होड़ चली लेकिन आज सरकार के प्रमुख अधिकारी ने स्वीकार किया कि बांध टूटने में भारत नहीं बल्कि नेपाल सरकार दोषी है। गृह मंत्रलय के प्रमुख सचिव उमेश कांत मैनाली ने कहा कि समय पर भारत सरकार और उनके अधिकारियों के साथ समन्वय नहीं किए जाने के कारण ही सप्त कोशी बांध टूट गया है। संविधान सभा के अध्यक्ष सुबास नेमांग द्वारा आयोजित सर्वदलीय बैठक में गृह सचिव ने अपनी सरकार की कमी– कमजोरी को स्वीकारा।’ यानी इस बांध को बचाने की जिम्मेदारी देश-विदेश के जिन जिन तत्वों पर थी, उन लोगों ने यदि दूरदर्शितापूर्ण काम किए होते तो शायद ऐसी विपदा सामने नहीं आती।
www.rashtriyasahara.com से साभार
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