Friday, September 7, 2007

फिर लौटेंगे तालिबान


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

यह मानसून फिर से
बीजों के बंद कपाट खोलेगानवांकुर फूटेंगे
धीरे-धीरे पसर जायेगी सांस की धूप
झमाझम बारिश की तर्ज़ पर झूमते हुए
इन्द्रधनुषी अलंकारों से सुसज्जित
दिशाओं से उतरेंगे
केसर के रंग के ध्वजारोही
और आतंकित होने का अवकाश दिए बिना ही
वामन डग भरते नांप लेंगे
ज़्यादा से ज़्यादा उजास ।
साँसों को पहली अचरज से ताकतीं अबोध आँखें
जान भी नहीं पाएंगी
कि कब उनके सामने खडी हो गयी
एक दुर्भेद्य दीवार और जब तन्द्रा टूटेगी
उन अनभ्यस्त हाथों मेँ होगी
अनुशासन की कोई प्रावेशिक किताब
धीरे-धीरे जो उन्हें भूलभुलैयों की तरफ ले जायेगी
पहले उन्हें सड़क की बाईं या दाईं तरफ चलना सिखाया जायेगा
फिर रंगों की सुरक्षित परिभाषा दी जायेगी
इस तरह जब तैयार कर लेंगे वे अपनी चारदीवारियां
और गले मिलते हुए हरियाली गायेंगे
दबे पाँव , चौकन्ने
संसद, विधानसभाओं ,मठों, मंदिरों
अकादमियों, सम्मेलनों, परिषदों और सभा भवनों की
आरामदेह कुर्सियों से कूदेंगे
कई-कई १०८,१००८ प्रख्यात, सुकीर्त
मार्त्तंड , प्रचंड
स्वामी,आचार्य ,जोशी , मोदी और वाजपेयी
और लीलते -चरते सारी हरियाली को
प्रमुदित मन से आप्त वाक्यों मेँ डकारेंगे-
जो अमरीका के साथ नहीं है-आतंकवादी है
जो भाजपा के साथ नहीं है-देशद्रोही है
जो हिंदू नहीं है-विदेशी जासूस है
फिर वे स्त्रियों से कहेंगे-घर के अन्दर जाओ
घरों से फौरन हटा ली जायेंगी खिड़कियाँ
और दरवाजे बाहर से बंद रहेंगे
फिर वे शूद्रों के गले मेँ ढोल बांधकर कहेंगे
गाँव से बाहर जाओ
और तब मौत की तरह के ख़ुफ़िया सन्नाटे को तोड़ता
तेजोमय चिर-प्रतीक्षित अटल रामराज्य आएगा
दुंदुभी बजाता, शंखनाद करता, जयघोष कराता
और तब एक गौरवमय अतीत वाले
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक हिंदू राष्ट्र की
कटी हुई जीभ वाली भूखी भीड़
या तो पूंछ हिलायेगी, या फिर झंडी
और लाउडस्पीकर की गगनभेदी चिल्लाहट
"जय श्री राम " के साथ
पीठ पर कोड़े खाता
एक पूरा का पूरा देश सुर मिलाएगा-
गों-गों-गों ।

राजेश चन्द्र
१७-०१-२००२

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