इस कविता के कवि हालाँकि इतने चर्चित नहीं रहे हैं कि उनका नाम सुनकर ही कविता पढ़ने की इच्छा जग जाये। एक अत्यंत प्रतिभावान कवि और उससे भी ज़्यादा संवेदनशील शख्सियत वाले युवा श्री राजीव झा आज गुमनामी झेल रहे हैं और हममें से अधिकांश साथी शायद ही उनका अता-पता बता सकें। इतनी प्रतिभा के बावजूद यदि वे नटरंग प्रतिष्ठान जैसे संगठन में पिछले कई सालों से दो-तीन हजार रुपये में काम कर रहे हैं , जहाँ भरपूर फंड्स रहने के बाद भी ज़रूरतमंद युवाओं से पांच सौ, हजार रुपये देकर महीने भर आठ घंटों तक काम करवाया जाता है तो यह हमारी भी संवेदनहीनता का परिचायक है। गौरतलब है कि यह संस्थान जिसके संस्थापक स्व.नेमिचंद्र जैन थे ,अब उनके परिवार के दूसरे सदस्य इसे अशोक वाजपेयी के सहयोग से चला रहे हैं। इस प्रतिष्ठान के बारे में फिर कभी बात करेंगे , आइये पहले राजीव की यह कविता पढ़ें-
कुछ दृश्य
अकेलेपन में कौंधते हैं
अकेलेपन में कौंधते हैं
स्वप्न में नहीं
सुबह नहाने के बाद
आइने से
वह आज फिर नहीं पोंछ पाई
उस चेहरे को
गुमसुम कोई चेहरा
किसी को कुछ कहता है
एक पुकार को सुनता हुआ
वह ऑफिस जा रही है
कुछ सोचते हुए
कुछ सोचते हुए
काफी दूर तक जायेगी
एक रोशनी उसके साथ
यह याददाश्त है
जिसमें वह खुद को
ठीक से पहचानती है।
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