अगर सीमांचल के छह जिलों में कोसी नदी की उद्दंडता और तबाही का इतिहास लिखा जायेगा तब कटघरे में सिर्फ कोसी नदी नहीं होगी। उसके साथ खड़े होंगे राज्य और केंद्र सरकार के वे प्रशासनिक महकमे जिनके जिम्मे थी नेपाल में अवस्थित वह बांध, जिसके बंधे होने से महफूज थी बिहार के सीमांचल जिलों में रहने वाली कराड़ों की आबादी। यह आबादी पिछले साठ वर्षों में लगभग भूल चुकी थी बाढ़ की त्रासदी और कोसी के महाजलप्रलय की कहानियां। अगर कोसी के जलप्रलय का इतिहास लिखा जायेगा तब कटघरे में खड़े होंगे, वे अभियंता जिन्हें गत 6 अगस्त को नेपाल के कुसहा बराज के समीप कोसी नदी के बांध में हो रहे कटाव का जायजा लेने को भेजा गया था। इतिहास के पन्नों में कैद होगी पिछली सरकार की उदासीनता और कथित ईमानदारी भी, जिसके कारण राज्य सरकार के अभियंता कुसहा बराज और वहां बने बांध की रक्षा करना अब अपनी जिम्मेदारियों का हिस्सा नहीं मानते थे। साथ ही दर्ज होगा नेपाल के साथ बेटी और रोटी का वह रिश्ता जो न जाने पिछली कई सदियों से एक-दूसरे के पूरक बने हुए हैं।
इतिहास जब कोसी के महाजलप्रलय का अपराध लिखेगा तब लिखी जायेगी 21वीं सदी के भारत में आपदा प्रबंधन की सुस्त चाल। जब कोसी की प्रचंड जलधाराओं ने नेपाल भाग में कुसहा के समीप एफलेक्स बांध के 12.10 और 12.90 किमी के बंधन को तोड़कर सीमांचल के छह जिलों का रूख कर लिया तब बिहार सरकार और भारत सरकार का आपदा प्रबंधन तंत्र क्या कर रहा था? ऐसा नहीं है कि बिहार में ‘कोसी मैया’ कहकर पुकारी जाने वाली कोसी नदी ने अपनी प्रंचडता और जल प्रलय का यह मंजर दिखाने से पहले सीमांचल के छह जिलों में रहने वाली करोड़ों की आबादी और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने वाली सरकार को आगाह नहीं किया था।
कोसी के इस महाप्रलय की कहानी गत 5 अगस्त को ही शुरू हो गयी, जब वहां से अभियंताओं की टीम ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर नेपाल भाग के कुसहा में बनी कोसी की बांध में टूटान की सूचना दी थी। इस सूचना के बाद 6 अगस्त को अभियंताओं की एक टीम कुसहा जाकर स्थिति का आकलन किया और सरकार को जानकारी दी कि कटाव तो हो रहा है लेकिन वह इतना बड़ा नहीं है जितना कि बताया गया है। इसके बाद बांध की मरम्मत के लिए नेपाल में निर्माण सामग्री भी गिराई गई पर सुरक्षा के अभाव में वहां के असामाजिक तत्वों ने निर्माण सामग्री गायब कर दी। नेपाल सरकार से सुरक्षा की गुहार भी लगायी गयी लेकिन तब नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल और प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की ताजपोशी के बीच ये गुहार बेअसर साबित हुई। तब नेपाल में बदले राजनीतिक हालात और माआ॓वादियों की बढ़ी शक्ति के कारण बांध की मरम्मती के काम के लिए वहां के ठेकेदारों और मजदूरों ने बिहार सरकार से मेहनताने के रूप में उस रकम की मांग की जिसे मंजूर करने की इजाजत सरकार ने भी नहीं दे रखी थी। बता दें कि भारत-नेपाल में वर्ष 1956 में कोसी नदी पर बने बराज और तटबंध को लेकर हुए समझौते में यह तय हुआ था कि बराज और तटबंधों के रख-रखाव की पूरी जिम्मेवारी तो भारत व बिहार सरकार की होगी, अभियंता भी भारतीय होंगे लेकिन रख-रखाव और मरम्मती के काम में सिर्फ नेपाली ठेकेदारों और मजदूरों को लगाया जायेगा। समझौते की इसी बंदु के कारण तेजी से कट रहे एफलेक्स बांध की मरम्मती का काम शुरू नहीं हो सका। अगर बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के सूत्रों की मानें तो वर्ष 2003-04 तक कोसी नदी पर नेपाल भाग में बने कुसहा बराज पर पदस्थापना के लिए अभियंताओं की बोली लगती थी। वहां सालों भर चलने वाले मरम्मती के कार्यों में कमीशनखोरी का इतना बोलबाला था कि हर अभियंता अपनी पूरी सेवा में एक बार वहां तैनाती चाहता था। लेकिन पिछली सरकार के जल संसाधन मंत्री ने इसपर पूरी तरह रोक दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि अभियंता यहां पदस्थापना को ही सजा मानने लगे। काम में दिलचस्पी लेने की पुरानी परम्परा खत्म हो गयी। नतीजा आज सबके सामने है।
जब पूरा देश 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ मनाने में व्यस्त था तब कोसी नदी प्रलय की नयी कहानी गढ़ रही थी। इस पूरे प्रकरण में सबसे अजीब स्थिति तो बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग की थी जिसने इतना सबकुछ होते हुए भी राजधानी पटना में बैठकर अपने अभियंताओं और अधिकारियों को इतनी छूट दिये रखा कि वहां तटबंध तेजी से कटते रहे और वे यहां बैठकर दावा करते रहे कि नेपाल के रास्ते बिहार में प्रवेश करने वाली नदियों के बराज, तटबंध और बांध पूरी तरह सुरक्षित हैं। लाखों-करोड़ों जिंदगियों के साथ लापरवाही का आलम यहीं खत्म नहीं होता। सूत्रों की मानें तो कोसी नदी के तटबंधों और बराज के रख-रखाव के लिए राज्य सरकार के खाते में अभी भी 80 करोड़ रूपये की राशि रखी हुई है लेकिन मरम्मती के नाम पर खर्च हुए महज 44 लाख रूपये।
जब गत 5 अगस्त को टूटान की सूचना मिली तब जाकर जल संसाधन विभाग ने कुल 6 लाख रूपये के निर्माण कार्य के लिए सामग्री मंगायी जिसे नेपाल के असामाजिक तत्व उठाकर अपने साथ ले गये। सीमांचल में रह रहे लोगों की जानमाल के साथ खिलवाड़ का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा और तब आयी 18 अगस्त की वह दोपहर जब कोसी की बेलगाम जलधारा ने कुसहा के समीप एफलेक्स बांध की 12.10 तथा 12.90 किमी के बीच करीब 50 मीटर के बांध को तोड़कर फिर आ॓र अपना रूख कर लिया जिसे पिछले 60 सालों से सुरक्षित समझा जा रहा था। अब यह टूटान लगभग तीन किमी लंबी हो चुकी है। वैसे बाढ़ का पानी उत्तर बिहार के लिए कोई नयी त्रासदी नहीं है लेकिन इस बार कोसी का पानी सूबे के उन इलाकों को अपनी चपेट में लिया है जो अबतक सुरक्षित समझे जाते थे। त्रासदी का दंश यहां इसलिए भी अधिक तीखा है क्योंकि यहां की वर्तमान पीढ़ी पिछले साठ सालों से बाढ़ के कहर को भूल चुकी थी।
www.rashtriyasahara.com से साभार
3 comments:
निश्चित रूप से आपराधिक लापरवाही है!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
त्रासदी का दंश यहां इसलिए भी अधिक तीखा है क्योंकि यहां की वर्तमान पीढ़ी पिछले साठ सालों से बाढ़ के कहर को भूल चुकी थी।
बिल्कुल सही कहना है आपका।
दुनिया कैसे-कैसे कारनामे कर रही है और हम एक छोटी सी प्राकृतिक आपदा के सामने असहाय हो जा रहे हैं।
निश्चित ही यह स्थिति हमारे देश में तरह-तरह के भ्रष्ट आचरण के कारण आयी है। हमारे सिविल इंजीनियर अपने को रुपया कमाने की मशीन बना दिये हैं। उन्हें बाढ़ की समस्या चुनौती नहीं बल्कि एक वरदान जैसे दिखती है जो उनकी मोटी कमाई का साधन बनती है।
एक बार मैने पढ़ा था कि महान वैज्ञानिक मेघनाद साहा ने भारत के जल-प्रबन्धन पर एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक रिपोर्ट तैयार किया था। लज्जा आनी चाहिये कि आज कम्प्यूटर और सूचना के युग में हमारे इंजीनियर कुछ नहीं कर पा रहे है। हमारे आपदा प्रबन्धक सो रहे हैं या उनकी सोच मक्खी के बराबर साबित हो रही है।
Post a Comment