Monday, June 16, 2008

36 साल में कितने कोस

* 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहाम में संयुक्त राष्ट्र का पहला जलवायु सम्मेलन आयोजित किया गया। इसके बाद ही पर्यावरण प्रदूषण अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना। सम्मेलन में सरकारों से मानव के क्रियाकलापों से हो रहे परिवर्तन को रोकने की अपील की गई। सम्मेलन के बाद विश्व मौसम संगठन और वैज्ञानिक संघों के संयुक्त तत्वावधान में विश्व जलवायु कार्यक्रम की शुरूआत की गई।
* 1988 में वैश्विक पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन के अध्ययन के उद्देश्य से आईपीसीसी (इंटर गवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज)का गठन किया गया।
* आइपीसीसी ने अपनी पहली रिपोर्ट 1990 में दी। इसमें वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर जलवायु परिवर्तन की बात स्वीकार की गई।
* 1990 में ही द्वितीय विश्व सम्मेलन हुआ। जलवायु परिवर्तनों पर एक मसौदे का ढ़ांचा तैयार करने की बात की गई। विभिन्न देशों के लिए विकास प्रक्रिया के अलग स्तरों पर जिम्मेदारी निश्चित की गई।
* 1992 में रियो डी जिनेरो में संयुक्त राष्ट्र का पर्यावरण और विकास सम्मेलन (पृथ्वी सम्मेलन) हुआ। शिखर वार्ता में 154 देशों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार किए गए मसौदे पर हस्ताक्षर किया। एजेंडा–21 को लागू करने संबंधी कार्यक्रम पर आम सहमति बनी। एजेंडे के अनुसार 2000 तक ग्रीन हाउस गैसों को 90 के स्तर पर लाने की बात की गई।
* 1995 में आईपीसीसी ने 2000 वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई दूसरी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कार्बन उत्सर्जन पर लगाम कसने पर खासा जोर दिया गया।* 1997 में जलवायु समस्या पर विचार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र आम सभा का विशेष सत्र बुलाया गया और रियो डी जिनेरो सम्मेलन के बाद की स्थिति की समीक्षा भी की गई।
* 1987 में ही क्योटो में विभिन्न राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ। इसमें ग्रीन हाउस उत्सर्जन के संबंध में बनाए गए अंतरराष्ट्रीय मापदंडों को कानूनी रूप से बांधने हेतु समझौता हुआ। संधि के अनुसार औघोगिक देशों को 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 5 प्रतिशत कम करना था। विश्व के 55 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार 55 देशों से औपचारिक स्वीकृति देने को कहा गया। संधि पूरी तरह से 16 फरवरी 2005 से लागू हुई। इसमें 141 देशों के हस्ताक्षर हैं। अस्ट्रेलिया व अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है। भारत और चीन संधि से अलग हैं।
* आईपीसीसी ने 2001 में तिसरी रिपोर्ट पेश की।
* 2001 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 5 क्षेत्रीय बैठकें हुईं। इसमें संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान ने एक महती आकलन रिपोर्ट जारी की जिसमें पिछले 10 सालों के दौरान टिकाऊ विकास को प्राप्त करने की दिशा में हुई प्रगति और अड़चनों की समीक्षा की गई थी।
* 2002 में जोहांसबर्ग सम्मेलन हुआ (दूसरा पृथ्वी सम्मेलन) यह अब तक के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में सबसे महत्वपूर्ण था। आयोजन अब तक के विभिन्न सम्मेलनों में निर्धारित लक्ष्यों को फलीभूत करने हेतु कार्य पद्धति बनाने के लिए किया गया था। किंतु विकसित और विकासशील देशों के बीच के टकराव के कारण सम्मेलन का लक्ष्य पूरा न हो सका।
* 2003 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के सदस्य देशों की बैठक जर्मनी के बॉन में हुई। इसमें ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के बारे में विस्तार से योजना बनी तथा क्योटो समझौते में आ रही अड़चनों पर विचार किया गया।
* 2004 में ब्यूनस आयर्स में जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन। गलोबल वार्मिंग के विषय पर दीर्घावधि योजनाओं को लेकर अमरीका और यूरोपीय संघ के बीच गहरे मतभेद।
* अप्रैल 2007 में बैंकॉक में जलवायु परिवर्तन पर एक अहम सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में 120 देशों के 400 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। अस्ट्रेलिया व अमेरिका ने सम्मेलन में भारत और चीन के लिए कार्बन उत्सर्जन के लिए लक्ष्य निर्धारित करने की बात कही। प्रस्ताव के प्रारूप को लेकर धनी और गरीब देशों में खींचतान।
* वर्ष 2007 में ही आईपीसीसी की चौथी रिपोर्ट जारी।
* 2007 के दिसंबर में जलवायु परिवर्तन पर बाली सम्मेलन। इसमें 2012 के बाद का रोडमैप तैयार करना था। सम्मेलन में अमेरिका द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिए लक्ष्य निर्धारित करने का विरोध। पूर्व अमरीकी उप राष्ट्रपति अल गोर ने बुश प्रशासन की आलोचना की। भारत और चीन ने मसौदे पर आपत्ति की।
* अप्रैल 2008 में बैंकॉक में सम्मेलन। अंतरराष्ट्रीय समझौते की दीर्घकालिक योजना के साथ बैठक संपन्न। इस कार्ययोजना को अंतिम रूप 2009 में कोपेनहेगेन में होने वाली बैठक में दिया जाएगा।
प्रस्तुति: प्रवीण कुमार
www.rashtriyasahara.com से साभार

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