Monday, June 30, 2008

दलित मुक्ति और धर्म परिवर्तन की राह

मुद्राराक्षस
पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक कट्टरपंथी हिन्दू संगठन का एक उत्तेजक सम्मेलन हुआ जिसका सबसे बड़ा मुद्दा यह था कि केन्द्र सरकार को सख्त कानून बनाकर भारत में धर्मान्तरण पर रोक लगानी चाहिए। हमारे संविधान के अनुसार यह देश धर्मनिरपेक्ष है यानी सरकार किसी खास धर्म के पक्ष में या किसी धर्म के विरोध में कोई काम न करने को प्रतिबद्ध है। इसी के अनुसार इस देश में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी भी धर्म को स्वीकार करने या उस धर्म को छोड़ने की आजादी मिली हुई है जिसे वह नापसंद करता हो। पिछली आधी सदी में स्थिति कुछ बदल गयी है वरना अमरीका में साठ के दशक में अपनी अस्मिता और सामाजिक बराबरी के लिए आन्दोलनकारी अश्वेतों ने बड़ी संख्या में ईसाइयत छोड़कर इस्लाम धर्म स्वीकार किया था जिसमें विख्यात मुक्केबाज कैसियस क्ले ने अपना नाम मुहम्मद अली रख लिया था। हमें ध्यान देना चाहिए कि बड़ी संख्या में हुए इन धर्म परिवर्तनों पर न तो अमरीकी सरकार को कोई असुविधा हुई और न ही ईसाई समुदाय ने इस धर्म परिवर्तन को लेकर कोई नाराजगी जाहिर की। कोई भी सभ्य देश और सभ्य समाज अपने सदस्यों को इस बात की आजादी खुशी से देता है कि वह अपनी पसंद के धर्म को चुन ले या जिस धर्म में वह असुविधा महसूस कर रहा हो उसे छोड़ भी दे। भारत इतना पिछड़ा तो नहीं ही है कि वह किसी के द्वारा धर्म परिवर्तन को सहन न करे।धर्म परिवर्तन के दो कारण हमें समझ लेने चाहिए। कोई व्यक्ति धर्म तब छोड़ता है जब उसे उस धर्म में तकलीफ हो रही है जिससे वह जन्म से जुड़ा रहा हो। या कोई व्यक्ति तब धर्म छोड़ता है जब उसे कोई दूसरा धर्म अपने से बेहतर लग रहा हो। पिछली सहस्राब्दि में भारत के करोड़ों दलितों, पिछड़ों ने इस्लाम धर्म अपनाया था क्योंकि हिन्दू धर्म व्यवस्था में हो रहे भेदभाव और अत्याचारों से वे तंग आ चुके थे। वे सवर्णोें के खुले और शर्मनाक अत्याचारों से मुक्त होने के लिए हिन्दुत्व छोड़कर इस्लाम की शरण में गये थे। यह उनकी मजबूरी थी कि या तो जिन्दा जलें या मुसलमान बनें। यही युक्ति दलितों-पिछड़ों को ईसाइयत में भी दिखाई दी थी इसलिए बहुतों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। लड़कियों को शिक्षित करने की कोशिश में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी का कड़ा विरोध ही नहीं किया गया था बल्कि हिंसक अत्याचार भी किये गये थे। अगर अंग्रेज की मदद न मिली होती तो न वे खुद शिक्षित हो पाते न शिक्षा के अपने अभियान को चला पाते। डा। अम्बेडकर ने बहुत दिन बर्दाश्त किया। आखिर में उन्हें भी हिन्दुत्व छोड़ना पड़ा और उन्होंने धर्म परिवर्तन का देशव्यापी अभियान चलाया। उत्तर प्रदेश और बिहार में राम स्वरूप वर्मा और ललई सिंह यादव ने बड़े पैमाने पर हिन्दुत्व से मुक्ति का लम्बा अभियान चलाया था। यह उन्हीं का प्रभाव था कि दलितों-पिछड़ों की सभाओं में नारे लगाए जाते रहे हैं - मारेंगे मर जाएंगे हिंदू नहीं कहाएंगे। मेरे परम मित्र उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष अपनी हर जनसभा में यह नारा लगवाते रहे हैं। आखिर क्यों? कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों को यह सोचना चाहिए था कि जिन्हें हजारों बरस से वे बांध कर रहते रहे हैं वे क्यों मुक्ति के लिए छटपटाने लगे? आखिर आज भी तो दुलीना झज्जर जैसी दर्दनाक हिंसक घटनाएं होती ही जा रही हैं। दलित पिछड़े इसीलिए दूसरे धर्म की शरण लेते रहे हैं।हमने देखा पिछले कुछ दिनों से हिन्दू संगठन भगत सिंह का नाम भी लेने लगे हैं। भगत सिंह का सम्मान अगर नेकनीयत से किया जा रहा है तो भगत सिंह ने जो लिखा है उसे भी पढ़ा जाना चाहिए। धर्म परिवर्तन को भगत सिंह ने दलितों की मुक्ति का रास्ता माना था-तुम्हारी कुछ हानि न होगी, बस गुलामी की जंजीरें कट जाएंगी।भगत सिंह यह मानते थे- जब उन्हें तुम इस तरह पशुओं से भी गया बीता समझोगे तो वे जरूर ही दूसरे धर्मों में शामिल हो जाएंगे जिनमें उन्हें अधिक अधिकार मिलेंगे। अंग्रेजों ने जिस कम्युनल एवार्ड और सेपरेट इलेक्टोरेट द्वारा दलितों को हिन्दुओं से अलग संप्रदाय बनाना चाहा था और जिसे गांधी ने आमरण अनशन करके रूकवाया था, भगत सिंह तो उसी के पक्ष में थे- या तो साम्प्रदायिक भेद का झंझट ही खत्म करो या फिर उनके अलग अधिकार उन्हें दे दो।धर्म परिवर्तन का मुद्दा यूं भी बहुत उलझा हुआ है। धर्म परिवर्तन करने कराने वालों का हिंसक विरोध कट्टरपंथी हिन्दू संगठन तो करते ही रहे हैं, देश की पुलिस भी कम पक्षपाती रवैया नहीं अपनाती। अक्सर वह यह आरोप लगाकर धर्म परिवर्तन कराने वालों को ही गिरफ्तार करती है कि वे जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन करा रहे थे। जबरन धर्म परिवर्तन एक असंभव काम है। जबरन किसी को धर्म परिवर्तन करने से रोकने की घटनाएं ही ज्यादा देखी जाती रही हैं। जबरदस्ती धर्म परिवर्तन किया जाय तो आज के लोकतांत्रिक समाज में वह ठहर नहीं सकता। मुसलमानों या अंग्रेजों ने अपने राज में अगर जोर जबरदस्ती की होती तो आज कोई हिन्दू बाकी नहीं होता। संस्कृत काव्यशास्त्री पंडितराज जगन्नाथ तो औरंगजेब का दरबारी था और मुस्लिम शहजादी से उसने प्रेम किया था। उसका धर्म तो औरंगजेब ने नहीं बदला था। जरूरत धर्म परिवर्तन रोकने के कानून बनाने की नहीं है। धर्म परिवर्तन कैसे आसान और बिना बाधा और रोकटोक के हो सके इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए।
www.rashtriyasahara.com से साभार

No comments: