शहरों का बेतहाशा फैलाव होने, अंधाधुंध पेड़ों के कटने, प्रदूषण बढ़ने और इस कारण बदलते ऋतु चक्र ने पानी की जरूरत और उसकी मांग के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है। इस जल समस्या के कारण देश के अधिकांश किसान इसकी कमी का रोना रो रहे हैंं, तो कुछ निजी कम्पनियां ऐसी भी हैं जो इसका व्यापार कर देश एवं विदेश से भारी मात्रा में धन कमाने में लगी हैं। विश्व बैंक पानी के इस अनैतिक व्यापार को बढ़ावा देने में लगा है। आज देश भर में अधिकृत रूप से 19 शहरों में पानी का व्यापार फल-फूल रहा है। लगभग चालीस शहरों में पानी का निजीकरण तथा उसका व्यापार हो रहा है। निजी कम्पनियां जहां जल वितरण की बागडोर अपने हाथों में लेकर मालामाल हो रही हैं, वहीं वहां रह रहे लोगों को प्रकृति के इस अमूल्य उपहार के लिये पैसे खर्चने पड़ रहे हैं। जब उन्हें पीने के लिये ही पानी खरीदना पड़ रहा है, तो खेती के लिये जल की उपलब्धता के विषय में बात करना ही व्यर्थ है। आज विश्व भर में तेजी से बढ़ रहे उघोग धंधों के दृष्टि से देखा जाय तो यह आज सबसे तेजी से बढ़ता हुआ उघोग है। भारत में बोतल बन्द पानी की मांग दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। विभिन्न संगठनों की रिर्पोटों को देखा जाय तो बोतल बन्द पानी का यह व्यापार भारत ही नहीं पूरे विश्व में तेजी से अपने पांव पसार रहा है। पानी का यह व्यापार अमेरिका में 8।2 प्रतिशत, मैक्सिको में 8।8 प्रतिशत, चीन में 20 प्रतिशत, ब्राजील में 15।4 प्रतिशत, फ्रांस में 4.2 प्रतिशत,जर्मनी में 4.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। हमारे देश में बोतल बन्द पानी का कारोबार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। पानी के व्यापार के चलते निजी कम्पनियां भारी मुनाफा कमा कर आगे बढ़ रही हंै। आंकड़े बताते हैं कि पूरे विश्व में पानी का यह बाजार फिलहाल 800 अरब अमेरिकी डॉलर का है। जो वर्ष 2010 में बढ़कर 2000 अरब अमेरिकी डॉलर का हो जायेगा। भारत में पानी के व्यापार की परियोजनाओं पर अकेले विश्व बैंक ने करोड़ों डॉलर का ऋण उपलब्ध कराया है जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को उनकी ही शर्तो पर दिया गया है। आंकड़े बताते हंै कि आने वाले समय में पानी का यह विश्वव्यापी संकट लगभग 40 देशों को लील लेगा। आगे चलकर दिन प्रतिदिन बढ़ रही जनसंख्या के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। वर्तमान में ही करीब छ: अरब लोग जल संसाधनों के लिये एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। दूसरी तरफ सन् 2050 तक विश्व में लगभग 8 अरब लोगों को पानी के अभाव में ही अपना जीवन बिताना पड़ेगा।वर्तमान में केवल उत्तर प्रदेश के ही 6000 गांवों में पानी उपलब्ध नहीं है। देश भर में चल रही नदी घाटी परियोजनाओं वाले क्षेत्रों में पानी की कमी से लगभग 25 करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। जल समस्या की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर गुजरात एवं कच्छ के क्षेत्र में नये खोदे गए 10 में से 6 कुओं में भी 1200 फुट की गहराई से कम पर पानी ही नही मिलता। बाजार में शीतल पेय का धंधा कर रही कंपनियों ने भी कुछ कम कहर नही बरपाया है। जहां–जहां भी ये कम्पनियां गईं वहां के जलस्तर को इन्होंने सबसे निचले स्तर पर लाकर ही छोड़ा। पानी के इस अंधाधुंध दोहन को लेकर बार-बार जनता सड़क पर तो निकलती है, लेकिन आज तक कोई भी आन्दोलन समेकित रूप से सफल होते नहीं दिख रहा है। हां, संतोष के लिये कुछ स्थानों पर जनता का आन्दोलन सफल होते हुए भी दिखाई दिखाई दिया है, लेकिन इसे पूरे जल समस्या को जोड़कर नही देखा जा सकता है। दूसरी तरफ भारत के चारों महानगरों को देखें तो नजारा कुछ और ही है। यहां जल समस्याओं को लेकर नित नयी बाते सामने आती है। यहां की सरकार पानी के लिये दूसरे राज्यों के सामने हाथ फैलाये खड़ी नजर आती है। लेकिन उपलब्ध पानी का समुचित उपयोग करने के प्रति इनकी कोई गंभीरता नही दिखाई देती। ये शहर मिलकर प्रतिदिन करीब 90 हजार करोड़ लीटर गंदा पानी निकालते हैं। लेकिन इनमें से करीब 25 करोड़ लीटर का ही शोधन हो पाता है। शेष पानी को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। दिल्ली में फैली पानी की पाइपलाइनों के रिसाव के कारण प्रतिदिन लाखों गैलन पानी रिस जाता है जिसका कोई नामलेवा नहीं है। देश में सन 1955 में पानी की उपलब्धता प्रतिव्यक्ति के हिसाब से 5227 घन मीटर थी, जो सन 2025 तक घट कर 1500 घन मीटर हो जायेगी। देश के कई स्थानों पर तो 1200 फुट तक की गहराई तक पानी नही मिलता।निजी कंपनियों द्वारा पानी का दोहन रोकने के लिये हमारे देश में कोई कानून नहीं है। इसे रोकने के लिये कड़े कानून बनाने होंगे। साथ ही, देश के हर वर्ग के लोगों को इसके दुरूपयोग से बचना होगा। सरकार को भी बर्बाद हो रहे पानी के शोधन पर गंभीर रूप से सार्थक पहल करनी होगी। सिर्फ विज्ञापन दिखा देने से कुछ नही होने वाला।
www.rashtriyasahara.com से साभार
1 comment:
बिल्कुल सटीक लिखा है आपने..
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