Friday, August 22, 2008

नीतीश बाबू "नंगटा" हो जाइये यही वक़्त है

भीमनगर बराज से १०-१२ किलोमीटर दूर कुशहा में पूर्वी कोशी तटबंध के करीब १००० मीटर तक ध्वस्त हो जाने से बिहार के सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और खगडिया जिले में भीषण तबाही हुई है। सुपौल जिले के वीरपुर, बसंतपुर, बलुआबाज़ार, बिसनपुर, बसमतिया, राघोपुर, सिमराही, करजाइन, हृदयनगर, सीतापुर, नरपतगंज, प्रतापगंज आदि इलाकों में जान-माल की भारी क्षति हुई है। पाँच लाख से भी ज़्यादा लोग विगत दस दिनों से बाढ़ में फंसे हुए हैं, हजारों लोग पानी के तेज़ बहाव में बह गए हैं- हजारों लापता हैं। वीरपुर और इसके आसपास के इलाकों में लोगों के घरों में औसतन १० फीट से ज़्यादा पानी भरा हुआ है। यहाँ की अधिकांश आबादी खेती-किसानी पर निर्भर थी और लगभग सभी घरों में माल-मवेशी थे। इस बाढ़ में कितने मवेशी डूबे या मरे हैं इसका हिसाब लगाने की कोई कोशिश अभी नहीं हुई है। अभी तो इंसानी लाशों को ही गिनना बाकी है।
खास बात यह है कि अन्य सभी पिछली सरकारों की तरह नीतीश की सरकार भी बाढ़ को बिहार में कमाई करने का सबसे बड़ा और सुरक्षित जरिया मानती है। सभी जानते हैं कि बिहार बाढ़ का पर्याय है और यहाँ हर साल कहीं न कहीं बाढ़ आती है। जानकार लोग तो यह भी कहते हैं कि बिहार में हर साल बाढ़ आती नहीं बल्कि लाई जाती है ताकि यहाँ के हुक्मरान, सरकारी अमले, नेता-मंत्रीगण, पत्रकार, बाबू लोग जमकर अपनी सात पुश्तों के लिए बसंत बुन सकें। पुलिस और गुंडे मिलकर बाढ़ में घिरे घरों में घुसकर लोगों के खून-पसीने की कमाई जमकर लूटते हैं और हर सफेदपोश बगुले तक उनका हिस्सा पहुचाते हैं। तटबंध अगर नहीं टूट रहे हों तो तोड़ दिए जाते हैं, पुल ऐसे बनाये ही जाते हैं जो थोड़ा सा भी दबाव न झेल सकें। बाढ़ आती है- तो सारे जिम्मेदार बिलों में छिप जाते हैं बाबू से लेकर मुख्यमंत्री तक। सारा का सारा मीडिया मुख्यमंत्री और सत्ता की नंगी गोद में चिपटकर लौलीपौप चाभने लगता है। उसे भी आदमी की चीखें सुनाई नहीं देती। तबाही जितनी होगी कमाई भी उसी अनुपात में होगी। सो जब तक दबा सकते हो बाढ़ की ख़बरों को दबाओ, घरों को उजड़ने दो, इंसानों को मरने दो। फिक्र क्या है, यहाँ तो चित भी अपनी है और पट भी अपनी। पहले बाढ़ की होली खेलेंगे फ़िर राहत की दीवाली मनाएंगे। क्या स्टेट है अपना बिहार भी- मज़े करो नीतीश जी आपके पौ-बारह हैं ...........वरना मुख्यमंत्री की कुर्सी में और भला धरा ही क्या है?
ये बाढ़-वाढ़ सब विरोधियों की साजिश है जनता की चुनी हुई अबतक की सबसे जिम्मेदार सरकार को बदनाम करने की साजिश। जब नीतीश जी विपक्ष में थे तब भी विपक्ष की साजिश से ही बिहार में बाढ़ आती थी। खैर नीतीश बाबू(ये बाबुओं की जो प्रजाति है इसने बहुत नाम कमाया है) ने एक नया तुक्का छोड़ा है। उनका कहना है कि नेपाल के इलाक़े में स्थित तटबंध को मज़बूत करने के लिए इंजीनियर भेजे गए थे लेकिन स्थानीय लोगों ने उन्हें सहयोग नहीं दिया। इधर विपक्षी दलों का आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी नाकामी छिपाने के लिए ये बयान दे रहे हैं। दरअसल बाढ़ से पहले ही तटबंध का जायजा लेने के लिए टीम भेजी गई थी जिसने कहा था कि तटबंध टूटने का ख़तरा नहीं है। क्यों कहते कि खतरा है- यह तो आ बैल मुझे मार वाली बात हो जाती। भइया बड़े भाग मुख्यमंत्री पद पावा..........पिछली बार निगोड़ी लक्ष्मी आते-आते रह गयी थी। मुझे क्या लल्लू समझ रखा है ? अगर ये साबित भी हो जाए कि मुझे इस तबाही का पहले से पता था ....तो क्या उखाड़ लोगे ?
बीबीसी हिन्दी की वेबसाइट पर यह ख़बर दी गयी है कि समय पर राहत नहीं पहुँचने के कारण प्रभावित लोगों में भारी रोष है। सहानुभूति जताने पहुँचे एक विधायक पर लोग टूट पड़े और उनका एक हाथ टूट गया। इसी तरह पटना से विशेष प्रतिनिधि के तौर पर पहुँचे दो अधिकारियों को भी लोगों ने खदेड़ दिया और पुलिस वालों पर भी लोगों का गुस्सा फूटा। गुरुवार को सेना के हेलीकॉप्टर की मदद से खाने की सामग्री पहुँचाने की कोशिश की गई लेकिन सिर्फ़ दो सौ पैकेट गिराए गए। आम जनता में गुस्से को देखते हुए सरकार के प्रवक्ता पिछले दो दिनों से कह रहे थे कि अब राहत और बचाव कार्य में सेना की मदद ली जाएगी। लेकिन राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव आरके सिंह ने बीबीसी को बताया कि सेना के किसी जवान को राहत कार्य में नहीं लगाया गया है। आपदा विभाग का कहना है कि राज्य में बाढ़ से अब तक 40 लोगों की जानें गई हैं और 11 ज़िले के 900 गाँव इसकी चपेट में हैं।
...............जितने मुंह उतनी बातें...........सत्ता इसीका तो फायदा उठाती है। सच को अफवाह और अफवाह को सच बनाती है। वास्तव में अबतक न तो प्रशासन और न ही सरकार ने लोगों की सुधि लेने की कोशिश की है। इतनी भयावह बाढ़ में जो लाखों लोग ऊँची जगहों पर बीवी बाल बच्चों को लिए इस आस में पल गिन रहे हैं कि कोई तो आएगा उनके पास नए जीवन का संदेश लेकर ....कोई तो उनके भूखे बच्चों को सूखी रोटी का एक टुकडा देगा ......कोई तो बताएगा कि पास वाले गाँव में उनके स्वजन-सम्बन्धियों में से कितने लोग जीवित बच रहे हैं....कौन बताये इन निरीह लोगों को कि तुम्हारी जिंदगियों की कीमत इन हुक्मरानों के लिए कुछ भी नहीं है...कि तुम्हारी कराहों और बेबसियों से वे अपने और अपनी समस्त पीढियों के लिए बसंत बुनेंगे। कि इसी दिन के लिए तो वे अपनी आत्माओं को वेश्या बनाते रहते हैं।
....यही वक़्त है...अपनी किस्मत चमकाने का, कुछ कर जाने का यही वक़्त है नीतीश जी ..........अपने मतलब का वक़्त पहचानने की आपकी कला का लोहा तो जयप्रकाश बाबू भी मानते थे...बड़ी पारखी नज़र थी उनकी!....इस बाढ़ उत्सव के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...आपके बच्चे जियें.....

5 comments:

admin said...

आपकी बात का तो हम भी समर्थन करेंगे कि जब किस्मत चमकाने का मौका हो, तो चूकना नहीं चाहिए।

Srijan Shilpi said...

वाकई बहुत विनाशकारी है इस बार की बाढ़। और, इस बाढ़ ने जहां हजारों-लाखों आम लोगों के जीवन में उजाड़ ला दिया है, वहां ऐसे लोग भी हैं जो इसी बाढ़ में आबाद होंगे।

आपने बहुत अच्छा लिखा है।

अपना अपना आसमां said...

Rajesh Ji,
Ap ki chinta jaayaj hai. har sal baadh ati hai Bihar me har sal prashasanik kavaayad kie jaate hain par hotaa wahi Dhak ke Teen paat hai. Allah ki duaa se Bihar Ki badh khane-khilaane ka bada jariya ban gayaa. Times patrika par chchap chuke IAS Officer Goutam Goswami ki badi yad ati hai. Badh raahat kaary me Khule muh se Khane ki unhone aakhir ek misal hi kaayam ki thi.
Sumit Singh

Anwar Qureshi said...

आप ने अच्छा लिखा है ..देखते है किस्मत कब चमकाई जाती है ..

स्वयम्बरा said...

mai khanti bihari hoon.maine baarh ki vibhishika ko dekha hai.aur ye bhi jaanaa hai ki kis tarah ye kooch khaas logo ki jebe garm karne ka jaria ban jaataa hai.phir chahe sarkaar kisi ki bhi ho.badhai.