Monday, August 25, 2008

ब्लॉगिंग की दुनिया के मिरासियो, नीरो की संतानों

यह तुम सबके लिए भी एक शोकगीत है मृतात्माओं। तुम जिन्होंने उस इकलौते वैकल्पिक माध्यम की भी हत्या कर दी जो शायद इस तेज़ी से बदलती और अमानवीय होती दुनिया में पूरी तरह गैरज़रूरी मान लिए गए लाखों-करोड़ों असहाय और उत्पीड़ित जनों की आवाज़ बन सकता था। दुनिया की तमाम सरकारों, तमाम पार्टियों, तमाम दृश्य-श्रव्य और शाब्दिक माध्यमों ने जिस प्रकार पूँजी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है वैसे समय में तुम्हारे लिए यही सही था कि तुम भी वक़्त आने पर जबड़े खोल कर दिखा दो कि तुम्हारे मुंह में भी भेड़िये के दांत हैं ,कि तुम भी इंसानी जज्बातों के कोई मामूली बहेलिये नहीं हो, कि बदले में थोड़ी सी जूठन तुम्हारी तरफ़ भी उछाल दिया जाए।
पूरा उत्तर बिहार कोशी के पेट में समा चुका है सुपौल,सहरसा,अररिया,मधेपुरा,कटिहार, किशनगंज,पूर्णिया,खगडिया,बेगूसराय जिलों का कहीं पचास तो कहीं शत प्रतिशत इलाका जलमग्न है। एक लाख से अधिक लोगों के डूबकर मरने की चर्चा हो रही है, पन्द्रह-बीस लाख लोग पूरी तरह तबाह हो गए हैं,लाखों लोग ऊंची जगहों पर विगत दस-बारह दिनों से भूखे-प्यासे बाट जोह रहे हैं कि अब तो कोई मदद के लिए उनकी तरफ़ बढेगा,पर हर नए दिन भूख, भय और निराशा उनमें से ज्यादातर को मौत के मुंह में पहुँचा रही है। जो भी जिंदा है, जहाँ है वही फंसा हुआ है चारों तरफ़ दस से बीस मीटर हिलकोरें मारते हुए पानी का महासमुद्र है,सड़ रही हजारों-हज़ार इंसानी लाशों का अम्बार है,भूख-प्यास से मरते हुए बच्चों, औरतों,बुजुर्गों एवं अन्य लोगों का चीत्कार-हाहाकार है, आर्तनाद है, पर कहीं कोई मीडिया नहीं है,कोई सरकार नहीं है,कोई प्रशासन नहीं है, कोई मददगार हाथ नहीं है। ख़बर है कि सुपौल जो बाढ़ में सबसे ज़्यादा तबाह हुआ है, जहाँ सबसे ज़्यादा लोग मरे हैं या मर रहे हैं वहां जिलाधिकारी और कुछ ठेकेदारों-पूंजीपतियों की तरफ़ से कुछ नावों और मोटर बोटों का इंतजाम किया गया है जो इन इलाकों में फंसे हुए जीवित लोगों को बाहर निकालने के एवज में पाँच से दस हज़ार की रकम ले रहे हैं और खूब कमाई कर रहे हैं।
लाशें सड़ रही हैं महामारी फ़ैल चुकी है, नीतीश सरकार पर मुर्दनी छाई है जैसे नीतीश को सांप सूंघ गया हो। सरकार कभी कहती है ये बाढ़ नेपाल के असहयोग का परिणाम है,कभी मुकर जाती है,कभी कहती है सेना बचाव-कार्य में लगा दी गयी है पर उसका आपदा-प्रबंधन विभाग ही इसका ज़ोरदार खंडन कर देता है,कभी कहती है बाढ़-प्रभावित लोग काफी हिंसक हो गए हैं और राहत पहुंचाने वाले प्रतिनिधियों की हत्या कर देने पर उतारू हैं इसलिए कोई सरकारी अमला आगे आने को तैयार नहीं। ये मुख्यमंत्री कहीं सन्निपात का रोगी तो नहीं? ये किस तरह की लफ्फाजी है, ये कैसा बकवास है? पूरा मीडिया-तंत्र जैसे लकवाग्रस्त हो गया है-पटना से लेकर दिल्ली तक। मैंने सुना है दिल्ली की मीडिया में भी बिहारी पत्रकारों की बहुतायत है, फ़िर क्या वजह है कि यहाँ के अखबारों, चैनलों में अबतक इतनी भयावह आपदा की कोई नोटिस नहीं ली गयी? क्या हो गया है इन बिहारी पत्रकारों को क्या ये सब इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि अपने ही स्वजनों, सम्बन्धियों,जिला-जवारियों का चीत्कार इन्हें सुनाई नहीं दे रहा। क्या ये सभी उसी हत्यारी हुकूमत की जारज संतानें बन गए हैं जो आज बिहार की गद्दी पर गाव-तकिया लगाकर विराजमान है और पूरा विपक्ष जो इस आस में चुपचाप है कि अच्छा है सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़क रहा है, या कि इस शर्मिन्दगी में दड़बों में घुस गया है कि हमने भी तो यही सब किया था जब हमारी सत्ता थी।
ख़बर यह भी आ रही है(अफवाह नहीं)कि कोशी के नेपाल वाले हिस्से में तटबंध का एक और बड़ा हिस्सा (मुझे जगह का नाम बताया गया था जो मैं याद नहीं रख सका)लगभग ध्वस्त हो चुका है, जिसकी मरम्मत का कोई प्रयास फिलहाल शुरू नहीं हुआ। इस ख़बर से इलाके में काफी दहशत फ़ैल गयी है और जिन छिटपुट इलाकों में अबतक पानी का कहर नहीं पहुँचा था अब वहां भी लोग मौत के खौफ में जी रहे हैं-जैसे फोरबिशगंज और सहरसा के जिला केन्द्रों के आसपास रहने वाले। कहा जा रहा है कि अगर यह तटबंध उस स्थान पर टूटा तो बिहार के कई जिलों से जीवन का नामोनिशान ही शायद मिट जाए।
खैर नीतीश बिल में छुपे हैं,लालू और उनकी पार्टी इंसानी लाशों के अन्तिम आंकडों के आने तक चुप रहने की नीति अपना रही है। पूरा प्रांतीय और राष्ट्रीय मीडिया जगत जनता के नहीं सरकार और विपक्ष के सुर में बोल रहा है-और मालपुए के इंतजार में है। मुझे ब्लॉगिंग की दुनिया के तथाकथित जनपक्षधरों (सफेदपोश बगुलों)से भी गहरी निराशा है खासकर बिहारी ब्लॉगरों से। क्या हो गया है इन्हें, कैसी ठकुरसुहाती और व्यभिचार(साहित्यिक,सांस्कृतिक,पत्रकारीय,वाग्वैलासिक) में संलिप्त हैं। इनके विषय देखिये तो छिः उबकाई आती है .......यहाँ भी कितना घिनौना व्यापार चल रहा है। मैंने अपनी एक कविता में लिखा था कभी....उधृत करने की धृष्टता कर रहा हूँ....
"....मेरे समय के लेखक, पत्रकार,
प्रोफेसर और कविगण
कार,कॉर्डलैस और कंडोम से लैस हैं
दुराचारी सत्ता और जनता के बीच डैस हैं
इनके डूबने के लिए
चुल्लू भर पानी अब भी इसलिए कम है,
क्योंकि इन्हें आत्मा का नहीं
थोड़ी सुविधाएँ और जुटा लेने का गम है।"

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