Friday, July 18, 2008

तीसरे विश्वयुद्ध की दस्तक

सुभाष धूलिया
मध्य-पूर्व में क्या तीसरा महायुद्ध छिड़ने जा रहा है? क्या ईरान पर इस्राइल-अमेरिका आक्रमण करने जा रहे हैं या यह सिर्फ दबाव डालने के हथकंडे भर हैं। आज वास्तविकता ये है कि इस्राइल किसी भी कीमत पर ईरान को यूरेनियम संवर्धन की क्षमता विकसित नहीं करने देगा जिसका इस्तेमाल बिजली और नाभिकीय हथियार दोनों को बनाने के लिए किया जा सकता है। ईरान बिजली बनाने के लिए इस क्षमता को विकसित करने के अपने अधिकार का समर्पण करेगा, ये भी उम्मीद नहीं की जा सकती। ईरान को एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में उभरने से रोकना अमेरिका और इस्राइल की उस रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत इराक-अफगानिस्तान में युद्ध लड़े जा रहे हैं और मध्यपूर्व में सैनिक अड्डों की भरी-पूरी श्रृंखला कायम की गई है।इस्राइल ने पिछले दिनों एक बहुत बड़ा सैनिक अभ्यास किया जिसमें 100 से भी अधिक लड़ाकू विमानों ने भाग लिया जिसका मकसद 1400 किलोमीटर की दूरी पर बड़ा हमला करना था। इस्राइल से ईरानी नाभिकीय प्रतिष्ठान भी इतनी ही दूर हैं। इसके बदले में ईरान ने कई मिसाइलों का परीक्षण किया जो इस्राइल तक मारने की क्षमता रखती हैं। इस्राइल हालांकि स्वीकार नहीं करता पर ये सर्वविदित है कि इस्राइल के पास 100 से अधिक नाभिकीय बम हैं। लेकिन इस्राइल ईरान जैसे देश को नाभिकीय हथियार विकसित नहीं करने देगा जो इसके अस्तित्व को ही नहीं स्वीकार करता।अमेरिकी प्रशासन के एक हल्के में ये मानना है कि ईरान पर आक्रमण के विनाशकारी परिणाम होंगे जो द्वितीय विश्वयुद्ध के विनाश को भी बौना कर देंगे इसलिए राजनयिक तरीकों से ही ईरान को रोका जाना चाहिए। दूसरी आ॓र बुश प्रशासन के एक प्रभावशाली तबके का मानना है कि ईरान को राजनयिक तरीके से राजी करने के सारे राजनयिक प्रयास विफल हो चुके हैं और अब युद्ध ही एकमात्र विकल्प है। राष्ट्रपति बुश के हाल के ही बयानों से स्पष्ट है कि वो आक्रमण के विकल्प की आ॓र झुक रहे हैं। अमेरिका की सभी खुफिया एजेंसियों का आकलन है कि ईरान नाभिकीय हथियार बनाने के कार्यक्रम का 2003 में ही परित्याग कर चुका है लेकिन अमेरिका का राजनीतिक नेतृत्व इसे स्वीकार नहीं करता और उसका मानना है कि यूरेनियम संवर्धन की क्षमता हासिल करते ही नाभिकीय हथियार बनाए जा सकते हैं।ईरान के पास नाभिकीय हथियार होने भर से ही सत्ता समीकरण बदल जाएंगे। नाभिकीय ईरान के उदय से तेल संपन्न मध्यपूर्व पर नियंत्रण कायम करने का अमेरिका का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। ईरान नाभिकीय हथियारों के साथ-साथ अपने अकूत तेल संसाधनों के बल पर एक बड़ी क्षेत्रीय महाशक्ति बन जाएगा। नाभिकीय ईरान इस्राइल के लिए केवल सैनिक खतरा ही नहीं बल्कि अनेक तरह के संकट पैदा करेगा। इस्राइल इतना छोटा देश है कि इसके अस्तित्व को मिटाने के लिए एक ही बम काफी है। नाभिकीय ईरान के उदय के बाद इस्राइल मध्यपूर्व में सैनिक कार्रवाइयों के लिए उतना स्वच्छंद नहीं रह पाएगा जितना अब तक रहा है। नाभिकीय ईरान मध्यपूर्व में इस्राइल विरोधी तमाम इस्लामी और कट्टरपंथी ताकतों के संगठित होने का केंद्र बन जाएगा। इस्राइल के अस्तित्व को पैदा होने वाले खतरे से हर तरह के संसाधनों का पलायन शुरू हो जाएगा और इस्राइल का संपन्न तबका भी अधिक सुरक्षित स्थानों की आ॓र कूच कर सकता है। इस स्थिति में सैनिक ताकत के बल पर भी इस्राइल को जर्जर होने से रोकना मुश्किल होगा।सैनिक रूप से इस्राइल के लिए ईरान के नाभिकीय प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करना उतना आसान नहीं होगा जो उसने 1981 में इराक और पिछले सितंबर में सीरिया में किया था। लेकिन इस्राइली नेतृत्व का मानना है कि ईरान को नाभिकीय क्षमता हासिल करने से रोकने के लिए कुछ तो जोखिम उठाना ही होगा। अब चाहे आक्रमण इस्राइल करे या वह अमेरिका के साथ मिलकर आक्रमण करे, ईरान दोनों ही स्थितियों में इस्राइल और खाड़ी में अमेरिकी सैनिक अड्डों, युद्धपोतों और इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं पर प्रति आक्रमण करेगा। ईरान ने होमुर्ज चलडमरूमध्य को भी बंद करने की धमकी दी है जहां से विश्व की 40 प्रतिशत तेल की आपूर्ति होती है। अमेरिका ने चेतावनी दी है कि वह किसी भी कीमत पर इस सामरिक जलमार्ग को बंद नहीं होने देगा।तेल संकट से जूझ रहे विश्व के लिए 40 प्रतिशत तेल आपूर्ति के बाधित होने से क्या असर पड़ेगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। फिर ईरान तो दुनिया का चौथा बड़ा तेल उत्पादक देश है ऐसी स्थिति में क्या होगा इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ईरान द्वारा मिसाइल परीक्षण करने पर तेल के दाम प्रति बैरल 135 से बढ़कर 140।6 डॉलर हो गए थे।युद्ध के विनाशकारी परिणामों को सीमित करने के लिए अमेरिका और इस्राइल ऐसे आक्रमण की योजना बना रहे हैं जिससे ईरान की प्रतिआक्रमण की क्षमता को युद्ध के शुरूआती दौर में कुंद कर दिया जाए। इसके लिए एक बड़े आक्रमण की योजना बनाई जा रही है और ईरान के केवल नाभिकीय प्रतिष्ठानों को नहीं बल्कि तीन हजार से अधिक लक्ष्यों पर क्रूज मिसाइल से हमला किया जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि ईरान के अतिसुरक्षित नाभिकीय प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करने के लिए एक छोटे नाभिकीय बम का प्रयोग भी करना पड़ सकता है। इराक और अफगानिस्तान के अनुभव के बाद अमेरिका ईरान के युद्ध को चटपट खत्म करना चाहेगी और हां, इसके लिए ईरान का इस हद तक विनाश जरूरी है कि वो जल्द उठ ना सके। इस पृष्ठभूमि में यही सवाल बचा नजर आता है कि आक्रमण कब होगा?ईरान पर आक्रमण के मसले पर राष्ट्रपति बुश इस्राइल की सोच से सबसे ज्यादा करीब माने जाते हैं और अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ऐसा भी कुछ करना चाहते हैं कि उन्हें ‘ऐतिहासिक’ होने का दर्जा हासिल हो सके। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेट उम्मीदवार बराक आ॓बामा ईरान से सीधी बात के पक्षधर हैं और इस्राइल का भी ये मानना है कि अगर रिपब्लिकन मैक्केन भी राष्ट्रपति बनते हैं तो वे सत्ता संभालते ही ईरान पर आक्रमण का फैसला नहीं करेंगे। ऐसे में इस्राइल का मानना है कि ईरान को नाभिकीय क्षमता हासिल करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। इसलिए ईरान पर आक्रमण के लिए सबसे उपयुक्त समय 4 नवम्बर को मतदान और 20 जनवरी को अमेरिका में नए राष्ट्रपति के सत्तासीन होने के बीच का समय ही ‘ऐतिहासिक मौका’ है जब ईरान को ध्वस्त किया जा सकता है।इस पृष्ठभूमि में अगर युद्ध रोकने का कोई भी रास्ता तैयार करना है तो इस्राइल, अमेरिका या अहमदीनेजाद के नेतृत्व वाले ईरान में से किसी न किसी को तो झुकना ही होगा। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि जब हर पक्ष का इतना कुछ दांव पर लगा हुआ हो तो झुकेगा कौन?

http://www.rashtriyasahara.com/ से साभार

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