Tuesday, July 15, 2008

जल से खल

राजेन्द्र सिंह
(संरक्षक, जल बिरादरी)
एक तरफ हम और हमारी सरकारें नदियों को ‘मां’ कहती है लेकिन दूसरी तरफ वह इन नदियों के साथ मैला ढोने वाली मालगाड़ी की तरह व्यवहार कर रही है। देश भर के उघोग, नगरपालिका, पंचायतें और महानगर सब अपनी सारी गंदगी को नदी में ही डालते हैं। इसके बावजूद आज तक किसी भी सरकार ने किसी भी नगरपालिका व पंचायतों को दंडित नहीं किया है। फलस्वरूप अब सभी सरकारी संस्थाओं ने यह मान लिया है कि नदियों का काम मैला ढोना ही है। इसलिए शहर के सभी नाले नदियों में खोल दिये जाते हैं। आज एक तरफ तो नदियों को मैला करने का काम हो रहा है तो दूसरी तरफ इसे दूर करने के लिए हजारों करोड़ का बजट बन रहा है। यह हमारी मैली राजनीति के मैले चरित्र को उजागर करता है।
मैल की मैली राजनीति को ठीक करने के लिए नदियों की शुद्धता के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार, नदियों के प्रदूषण और अतिक्रमण को रोकने हेतु एक बड़ा आंदोलन आवश्यक है। इसे चलाने का काम हम लोग (जल बिरादरी) देश भर में कर रहे हंै। हमने देश भर में जागरूकता फैलाना तय किया है। देशभर के महाविघालयों व विघालयों में नदियों के संकट को समझने और इसके प्रति सरकार को संवेदनशील बनाने के लिए एक जनवरी से 31 मार्च तक नदियों को समझने और समझाने का काम किया है। जबकि एक अप्रैल से 31अक्टूबर तक राज्य सरकारों पर नदी नीति बनवाने के लिए दबाव डालने का काम चल रहा है। इस कार्यक्रम के तहत भागीरथी और सरयू नदी में आमरण अनशन चल रहा है। भागीरथी में देश के सर्वोच्च पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल (गुरदास अग्रवाल) और सरयू नदी में सौंग गांव की महिलाओं व पुरूषों ने आमरण अनशन किया। यह अनशन तब तक चला जब तक सरकार ने आयोग गठित नहीं किया। इसी प्रकार देशभर के दूसरे राज्यों में भी नदी सत्याग्रह अपनी जीत की तरफ बढ़ रहा है। दिल्ली में चल रहा यमुना सत्याग्रह तब तक जारी रहा जब तक उपराज्यपाल ने यमुना खादर में डीएमआरसी का निर्माण कार्य न रोक दिया। इसी प्रकार महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात समेत देशभर में नदी संरक्षण अभियान ने अपनी कामयाबी हासिल की है।
अब समाज सरकार से नदियों के बारे में सवाल पूछने लगा है। अब भारत का समाज नदियों के साथ जुड़ने लगा है जब समाज नदियों के साथ जुड़ जायेगा तो नदियों को जोड़ने के नाम पर नदी जोड़ योजनाओं को रोकने में सफलता मिलेगी। नदी सत्याग्रह संरक्षण का लक्ष्य यही है कि समाज खुद नदियों के साथ जुड़ कर नदियों को शुद्ध सदा नीरा बनाने हेतु राज्य सरकारों तथा भारत सरकार से नदी पुनर्जीवन नीति बनवाने तथा नदियों को राजस्थान की अरवरी नदी की तरह पुनर्जीवित करने के लिए समाज भी इस काम में जुड़े। आज सरकारें नदियों के साथ खिलवाड़ कर रही है। हमारे अधिकारियों को नदियों का चरित्र समझ में नहीं आ रहा है। जब तक किसी अधिकारी या सरकार को नदियों के चरित्र का पता नहीं चलेगा तब तक नदियों का भला नहीं होगा।प्रस्तुति : अमित कुमार
http://www.rashtriyasahara.com/ से साभार

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