Friday, July 25, 2008

सामाजिक नियंत्रण के गैरपारंपरिक नुस्खे

सुभाष गाताडे
क्या आप ऐसे दृश्य की कल्पना कर सकते हैं कि मुल्क का मशहूर मजदूर नेता फैक्टरी गेट पर हड़ताली मजदूरों के हक में भाषण दे रहा है और अचानक बेहोश होकर गिरता है? इतना ही नहीं, नेता को सुनने एकत्रित भीड़ में से कई लोग उसी वक्त अपनी जगह पर खड़े-खड़े धड़ाम से गिर जाते हैं? अंदाजा लगाया जा सकता है कि आभासी लगनेवाला यह दृश्य अगर हकीकत में बदल जाए तो किस किस्म की भगदड़ मच सकती है और जीत के करीब पहुंची लड़ाई कभी अचानक हार में बदल सकती है।वैसे इन दिनों अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन में सामाजिक नियंत्रण के जिन गैरपारंपरिक और गैरप्राणघातक हथियारों पर जोरशोर से काम हो रहा है, उसे देखते हुए आनेवाले कुछ दिनों में ऐसी संभावना से हम रू-ब-रू भी हो सकते हैं। विज्ञान पर चर्चित पत्रिका ‘न्यू साइंटिस्ट’ के कुछ समय पहले प्रकाशित अंक में ऐसे हथियारों की चर्चा थी (3 जुलाई, 2008)। इसके मुताबिक, पूंजीपति उघमियों का एक हिस्सा इन दिनों एक ऐसी माइक्रोवेव किरण गन तैयार करने में जुटा है, जो सीधे लोगों के सिर में आवाज पहुंचा देगी। इस उत्पाद को अमेरिका सेना द्वारा ‘युद्ध के अलावा अन्य कामों में’ भीड़ नियंत्रण हेतु इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें माइक्रोवेव ऑडिआ॓ इफेक्ट का इस्तेमाल होता है, जिसमें छोटे माइक्रोवेव लहरें/पल्सेस तेजी से टिशू को गर्म करते हैं और सिर में एक शॉकवेव पैदा करते हैं। पेंटागन प्रसन्न है कि इस किरण को इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से संचालित किया जाता है जो एक साथ कई निशानों तक पहुंच सकती है!साफ है कि इस माइक्रोवेव गन से किरणें फेंकी जाएगी तो पता चला, भाषण देते–देते मजदूर नेता वहीं बेहोश होकर गिर गया और उसके इर्दगिर्द खड़े मजदूर इसी तरह धराशायी हुए। इस बात के मद्देनजर रखते हुए कि ऐसी गन का विरोध होगा और उसे मानवाधिकारों का हनन बताया जाएगा, इसे स्वीकार्य बनाने की कवायद भी चल रही है। यह कहा जा रहा है कि इसके गैरसैनिक उपयोग भी हो सकते हैं, जैसे कहीं टिड्डी दल का हमला हो जाए तो ऐसे कीड़ों को भगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, यह बात भी रेखांकित की जा रही है कि ऐसी तकनीक से उन लोगों को लाभ हो सकता है जिनकी सुनने की क्षमता ठीक नहीं है। पेंटागन में इसके लिए एक महकमा तैयार किया गया है, जो इस दिशा में नए–नए उपकरणों/हथियारों की खोज में जुटा है। इसका नाम है ‘ज्वाइंट नान–लेथल वेपन्स डायरेक्टोरेट’ अर्थात ‘गैरप्राणघातक हथियार निदेशालय’। यहां विकसित किए जा रहे अकोस्टिक माइक्रोवेव हथियार, लेसर चालित प्लाज्मा चैनल्स या वोर्टेक्स रिंग गंस जैसे उपकरणों से लोगों को बोध हो सकता है कि ये किसी विज्ञान कथा के हिस्से तो नहीं हैं। एक तरह से कहें, तो यहां सबसे महत्वपूर्ण काम रेथोन्स एक्टिव डिनॉयल सिस्टम पर हो रहा है जो एक तरह का संदेश ऊर्जा हथियार है जिसे भीड़ को काबू करने में हो सकता है। इसके इस्तेमाल के बारे में मशहूर है कि यह मनुष्य की त्वचा को 130 डिग्री फारेनहाइट तक गर्मा देती है। देख सकते हैं कि माइक्रोवेव किरण गन इसी का बहुत सुधरा रूप है। अमन पसंद वैज्ञानिकों में इन गैरपारंपरिक हथियारों को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। चर्चित विश्लेषक टॉम बुर्गहार्ड के मुताबिक ‘यह नया फासीवाद जैव निर्धारणवादी विचारधारा और अग्रगामी तकनीकी साधनों का इस्तेमाल करते हुए शरीर पर हमला करता है।’ इन गैरपारम्परिक हथियारों के आविष्कार के जरिए अमेरिकी सैन्यवाद मानवाधिकार उल्लंघन की ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है। अब लोगों को ‘शांत’ करने की अपनी योजनाओं के तहत सीधे मानवीय शरीर और मन की सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है। इस नयी किस्म की ‘युद्धभूमि’ पर अपना वर्चस्व कायम करने में अकादमिक जगत न केवल केन्द्रीय भूमिका निभा रहे हैं। दमन के खास मकसद के लिए पेशेवर वैज्ञानिकों की विशष्टि सेवाएं ली जा रही हैं। ‘गैरप्राणघातक’ हथियारों के निर्माण के काम को सरकारों या निजी कॉरपोरेट प्रतिष्ठानोें की तरफ से धड़ल्ले से आगे बढ़ाया रहा है, जिसमें अग्रणी शिक्षा संस्थान जुड़े हैं। अपनी चर्चित किताब ‘द कॉम्प्लेक्स’ में निक टर्स नामक अनुसंधानकर्ता बताते हैं कि किस तरह दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी अकादमिक जगत अनुसंधान एवं विकास की परियोजनाओं के लिए पेंटागन के पैसे पर निर्भर रहने लगा है, जिसके अंदर ‘उच्च शिक्षा के परिदृश्य को बदलने, रिसर्च एजेंडे को प्रभावित करने, पाठ्यक्रमों की अन्तर्वस्तु बदलने’ की क्षमता दिखती है। इसी के अंतर्गत एमआईटी जैसे विश्वविख्यात संस्थान द्वारा स्थापित अपनी रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘द मितर कॉरपोरेशन को 88 करोड़ डॉलर का अनुदान मिला!
www.rashtriyasahara.com से साभार

No comments: